बस्तर:बाहें फ़ैलाए यामिनी

प्रस्तुतकर्ता Unknown मंगलवार, 29 जनवरी 2013

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चित्रकुट जलप्रपात रात का दृष्य (मेरे मोबाईल से)
म अब चित्रकूट जाना चाहते थे, शाम के 5 बज रहे थे। हमारी मंजिल 66 किलोमीटर दूर थी। सपाटे से चल पड़े क्योंकि थोड़ी देर में अंधेरा होने को था। जगदलपुर से 6 किलोमीटर पहले अंकल की सीमेंट ब्लॉक फ़ैक्टरी है। गेट खुला देखकर भीतर प्रवेश कर गए। वे फ़ैक्टरी में ही मिल गए। चाय पीते हुए पौन घंटा बीत गया। वहाँ पता चला कि चित्रकूट जलप्रपात रात में भी देखा जा सकता है। वहाँ शासन ने बिजली की सुविधा कर रखी है। यह हमारे लिए अच्छा हुआ। नहीं तो सुबह उठकर जाना पड़ता। रात को जलप्रपात देखना अच्छा रहेगा। हमने चित्रकूट का रास्ता पकड़ लिया। बरसात लगातार जारी थी। हम कुछ भीगे हुए थे। इसी चित्रकूट रोड़ पर अली सा का घर भी है। रास्ते में देखने पर समझ नहीं आया। हम आगे बढते गए। एक जगह चित्रधारा प्रपात का बोर्ड भी लगा था। यह चित्रकूट से अलग झरना है। पर हमें तो चित्रकूट जाना था। चित्रकूट का असली नाम चित्रकोट है, पर चित्रकूट ही बोला जाता है। गांव में पहुंचने से पहले देखा कि बिजली की अच्छी रोशनी की गयी है। सड़क पर बत्तियाँ लगी हुई है।


चित्रकुट जलप्रपात रात का दृष्य (मेरे मोबाईल से)
रास्ता एक गेट के सामने जाकर खत्म होता है, गेट बंद था, इसलिए हमने दायीं तरफ़ एक मार्ग देखा तो उधर चल पड़े। यह रास्ता चित्रकूट के रिसोर्ट को जाता है। हम जल प्रपात की जगह रिसोर्ट में पहुंच गए। वहाँ पूछने पर जल प्रपात उस गेट के समीप ही बताया गया। हम वापस आए, बरसात जारी रही, सड़क पर ही गाड़ी लगाकर जलप्रपात देखने उतर गए। जल प्रपात के सामने एक बड़ी फ़ोकस लाईट लगी हुई है, जिसमें पर्याप्त रोशनी नहीं है। फ़िर भी नजारा बहुत अच्छा था। गरजती हुई नदी खड्ड में गिर रही थी। दूधिया फ़ूहार खड्ड में छाई  हुई थी। मैने अपने मोबाईल से 2 चित्र लिए। पर मोनु का हैंडी कैम काम नहीं कर पाया। उसका कहना था कि अगर जल्दी आते तो एक विडियो बन ही जाता। लेकिन समय हमारे पास इतना था। मित्र का कहना था अगर होट्ल से सामान साथ ले आते तो यहीं रिसोर्ट में रुक जाते और सुबह जलप्रपात देखकर वापस चले जाते। यहाँ रुकना अब संभव नहीं था। इसलिए हमें जगदलपुर ही वापस लौटना था।

चित्रकूट जलप्रपात (राजतंत्र के सौजन्य से)
चित्रकूट जल प्रपात को नियाग्रा प्रपात की संज्ञा दी गयी है। यहां इंद्रावती नदी ऊंचाई से नीचे गिरती है और इसकी धूंध में बहुत ही सुंदर इंद्रधनुष बनता है। पर हम रात में पहुचे थे, इसलिए इंद्रधनुष दिखना संभव नही था, नदी अनवरत गर्जना कर रही थी। कुछ देर तक हम प्रपात के किनारे चट्टानों पर खड़े होकर उसका अदभूत रुप निहारते रहे। अधिक देर खड़े रहते तो बरसात में पूरे ही भीग जाते। वापस आते हुए जलप्रपात के किनारे एक जगह पर महादेव जी भी विराजमान हैं। बरसात के कारण पत्थरों पर फ़िसलन हो गयी थी इसलिए अधिक खतरा उठाना ठीक नहीं था। चित्रकूट जलप्रपात भारत में नियाग्रा के नाम से प्रसिद्ध हो चुका है। यहाँ स्वयं के वाहन एवं बस से आया जा सकता है। रुकने लिए रिसोर्ट की व्यवस्था है, हम चूक गए, लेकिन आप चूक न जाना। दुबारा आने पर यहीं रिसोर्ट में रुकने का कार्यक्रम जरुर बनाएगें। यहाँ पर एक हैलीपैड भी है जो सिर्फ़ सरकारी कार्यक्रमों में उपयोग में लाया जाता है। जलप्रपात दर्शन का आनंद लेकर हम जगदलपुर चल दिए।

जगदलपुर महल में दंतेश्वरी मंदिर (रात का दृश्य)
हम जगदलपुर लगभग आठ बजे पहुंच चुके थे। रास्ते में मुझे एन्थ्रोपोलाजी म्युजियम दिखाई दिया। यह म्युजियम गुगल पर सर्च होने पर दिखाई दिया। लेकिन हमारे पहुंचने तक बंद हो चुका था। पिछली बार जब आया था तब भी इस म्युजियम में बिजली बंद थी और मैं देख नहीं पाया था। ध्यान आया कि यहीं पर आन्ध्रसमाजम का बालाजी मंदिर भी है। बालाजी मंदिर को यहाँ बहुत ढंग से बनाया गया है। शिल्पकारों ने दक्षिण शैली में मूर्तियाँ गढने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। हम बालाजी मंदिर में दर्शन करने पहुंचे। एन्थ्रोपोलाजी म्युजियम के आगे ही अली सा दौलत खाना है। इनको मंदिर दर्शन के लिए छोड़ कर अली सा से मिलने पहुंचे। अली सा से मिलकर अच्छा लगा। एक और अच्छी बात हैं उनमें किसी सी विषय में पूछने पर विस्तार से समझाते हैं कि आप भूल ही नहीं सकते। समयाभाव के कारण हम चाय पीकर वहाँ से विदा हुए। अली सा ने बताया कि उन्होने अपने मछली पालन टैंक के पानी को कुछ कम कर दिया है। उसमें मछलियाँ भी है काम की।

दुधिया रोशनी में चमकता राजमहल
बालाजी मंदिर से आकर बाकी साथियों को साथ लेकर हम शहर में पहुचे। जगदलपुर में मुझे सारे चौक एक से ही दिखाई देते हैं। जब भी आता हूँ भटक जाता हूँ। अपना होटल ढूंढते हुए हम सीरासार चौक याने राजमहल के सामने पहुंच गए। राजमहल दूधिया प्रकाश में दूर से ही चमक रहा था। राजमहल के भीतर भी दंतेश्वरी माई का मंदिर है। नव वर्ष पर देवी दर्शन करने वालों की लाईन लगी थी। हम भी पहुचे दर्शन हेतू, पता चला कि महल का राजकक्ष बंद हो चुका है। उसे हम नहीं देख पाए। साढे नौ बज चुके थे। रेनबो में कल रात को खाए खाने का अनुभव ठीक नहीं था। तो हमने बाहर ही खाने का विचार किया। अली सा ने आकांक्षा होटल का पता दिया था। इस आकांक्षा होटल में 1990 में एक बार रुक चुका था। लेकिन मुझे तो नया साल सेलीब्रेट करना था। इसलिए मैने कहा कि मुझे अपने होटल तक छोड़ दो, फ़िर सारे आकांक्षा होटल में जाकर भोजन कर आओ।

ढलता सूरज अस्ताचल को
काऊंटर पर आते ही एक लम्बा आर्डर मार दिया और अपने रुम में पहुच गया। टीवी पर समाचार जारी थे, मित्रों के फ़ोन आने लगे। पता चला कि बरसात पूरे छत्तीसगढ में हो रही है। मैने सोचा था कि वन होने के कारण बस्तर में ही हो रही होगी। मेरा कयास गलत निकला। मंदरस के सिप के साथ नए वर्ष के आगमन का आनंद आने लगा। कुछ मित्रों को फ़ोन लगा कर नव वर्ष की शुभकामनाएं दी। कभी मित्रों के साथ नया साल मनाते थे, पिछले कुछ सालों में घर पर बच्चों के साथ मनाते हैं। घर फ़ोन लगाया तो पता चला कि भारी बरसात के कारण बिजली रानी रुठ गयी है, केक यूँ ही पड़ा है टेबल पर, बच्चे इंतजार करके सो चुके हैं। हम इधर अकेले बैठ कर नव वर्ष का इंतजार कर रहे थे। कब आए और उसका स्वागत करें। गुगल, ब्लॉग, मेल-फ़ीमेल सब भूल गए। सूर्य के क्षितिज से मिलन के पश्चात नव वर्ष की वेला में बाहें फ़ैलाए यामिनी स्वागत के लिए तैयार थी। कितनी देर तक उसके आग्राह को टालता, आगोश में समा ही गया।

एक रात में ही एक साल बीत गया, पलक खुलते ही 2012 सामने था। कितना कुछ बदल गया, सुहानी सुबह हो गई। बीते हुए पलों के निशान कमरे में यत्र-तत्र बिखरे थे। अब समेटना था उन्हे, जाने का समय आ गया। सुबह के 7 बज रहे थे, बीती रात की खुमारी से सूर्यदेवता नहीं उबरे थे, वे भी ड्यूटी भूल कर 2012 के प्रथम रविवार को देर तक बिस्तर पर थे। अंधेरा कायम था, हमें तो चलना था इसलिए ठंडे पानी में ही डुबकी लगाई। रंगोली के कार्यक्रम में ए आर रहमान स्पेशल चल रहा था और हम थे लाईफ़ जैकेट लेकर जादू वाले नयनों में डूबने को बेताब, चैनल बदलना पड़ा। हमारे मन माफ़िक गाने चलने लगे। ये जिन्दगी उसी की है.........., हमे पता है भाई, ये जिन्दगी उसी की है। जैसे सूदखोर लाला रोज चौखट पर आकर बता जाता है ब्याज कितना हुआ है वैसे ही तुम भी रोज याद दिला जाते हो कि ये जिन्दगी उसी की है। सच है उधार कभी चैन नहीं लेने देती। सूरज रात भर चले न चले पर तुम्हारा सूद 24X7 कल्लाक चलता है। इसीलिए कबीर ने जस की तस धर दीनी चदरिया। हम जब भी जाएगें तुम्हारा मूल सूद समेत चुका कर जाएगें।


किर्रर्र किर्रर्र, किर्रर्र किर्रर्र की आवाज के साथ दरवाजा खुला तो बैरा नजर आया। "सर सामान नीचे गाड़ी में रखना है।" मन ही मन सोचता हूँ कि चैन के दो पल भी कोई लेने नहीं देता। सूद काफ़ी बढ चुका है मूल अब चुका ही देना चाहिए। सामान नीचे गाड़ी में पहुंचता है, मै नए साल की सुबह की शुरुआत दही और शक्कर से करता हूँ। बिल काऊंटर पर थोड़ी सी गहमा गहमी के बाद मामला फ़िट हो जाता है और हम चल पड़ते हैं अपने गंतव्य की ओर। बस्तर का गढवा शिल्प बहुत प्रसिद्ध हो चुका है। सागौन की लकड़ी में बस्तर की सांस्कृतिक विरासत की शिल्पकारी की देश भर में मांग है। इन्हे बड़े अधिकारियों के घर में ड्राईंग रुम की शोभा बढाते देखता हूँ। आज कल गिफ़्ट के रुप में इनका प्रचलन खूब बढ रहा है। हमारे मन में आता है कि कुछ खरीदना चाहिए। हमें जगदलपुर से जल्दी बाहर निकलना था इसलिए मैने कहा कि कोन्डागाँव में ले लेगें। कोंडागाँव बस्तर जिले का ही एक ब्लॉक है, जिस दिन हम कोण्डागाँव पहुंच रहे थे उसी दिन यह जिला बन रहा है। 1 जनवरी 2012 को कोण्डागाँव ने विधिवत जिले का रुप ले लिया और हम उसके साक्षी बने...............आगे पढें

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