tag:blogger.com,1999:blog-15015880561931830952024-02-07T09:43:03.575+05:30छत्तीसगढ: एक सैलानी की कलम सेAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.comBlogger25125tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-78764463223865815252014-07-05T18:31:00.000+05:302014-07-05T21:55:17.978+05:30पर्यटन का सिरमौर बनने अग्रसर छत्तीसगढ़
छत्तीसगढ़ राज्य के निर्माण के डेढ दशक बाद के बदलाव स्पष्ट दिखाई देते हैं। राज्य ने लगभग सभी क्षेत्रों में विकास के नए आयामों को छुआ है। सड़क, बिजली-पानी, शिक्षा, भोजन, स्वास्थ्य आदि मूलभूत सेवाओं में वृद्धि हुई है। इसके साथ ही पर्यटन के विकास क्षेत्र में राज्य ने उल्लेखनीय कार्य किया है। केन्द्रीय पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार छत्तीसगढ़ राज्य के पर्यटन ने भारत के शीर्ष-10 राज्यों में अपना Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-36097659055386318742014-06-30T11:09:00.000+05:302014-07-23T22:59:16.831+05:30हरेली तिहार: टोनही संस्कृति एवं मिथक
धरती हरियाली से मस्त
सावन का महीना प्रारंभ होते ही चारों तरफ़ हरियाली छा जाती है। नदी-नाले प्रवाहमान हो जाते हैं तो मेंढकों के टर्राने के लिए डबरा-खोचका भर जाते हैं। जहाँ तक नजर जाए वहाँ तक हरियाली रहती है। आँखों को सुकून मिलता है तो मन-तन भी हरिया जाता है। यही समय होता है श्रावण मास के कृष्ण पक्ष में अमावश्या को "हरेली तिहार" मनाने का। नाम से ही प्रतीत होता है कि इस त्यौहार को मनाने का Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-23409957508385029012014-06-29T16:15:00.000+05:302014-06-29T16:46:43.088+05:30छत्तीसगढ़: देवालयों में उत्कीर्ण मिथुन मूर्तियाँ
प्राकृतिक सुषमा से भरपूर अद्भुत सौंदर्य एवं प्राचीन गढ़ों के प्रदेश छत्तीसगढ़ को प्रकृति ने नैसर्गिक रुप से अनुपम शृंगार दिया है। शस्य श्यामला धरा के मनमोहक शृंगार के संग यहाँ के प्राचीन मंदिरों, बौद्ध विहारों एवं जैन विहारों में मानवकृत अनुपम मिथुन शिल्प सौंदर्य का दर्शन होता है। कलचुरियों, पाण्डूवंशियों एवं नागवंशियों ने अपने कार्यकाल में भव्य मंदिरों एवं विशाल बौद्ध विहारों का निर्माण कराया। Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com12tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-10292247342615958212014-06-24T20:13:00.004+05:302014-06-24T20:13:59.106+05:30कुरुद अंचल का मधुबन धाम
छत्तीसगढ़ अंचल में फ़सल कटाई और मिंजाई के उपरांत मेलों का दौर शुरु हो जाता है। साल भर की हाड़ तोड़ मेहनत के पश्चात किसान मेलों एवं उत्सवों के मनोरंजन द्वारा आने वाले फ़सली मौसम के लिए उर्जा संचित करता है। छत्तीसगढ़ में महानदी के तीर राजिम एवं शिवरीनारायण जैसे बड़े मेले भरते हैं तो इन मेलों के सम्पन्न होने पर अन्य स्थानों पर छोटे मेले भी भरते हैं, जहाँ ग्रामीण आवश्यकता की सामग्री बिसाने के साथ-साथ Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-84652961471566825402014-06-20T21:24:00.002+05:302014-06-20T21:24:42.702+05:30नागमाड़ा सरगुजा : रहस्यमय गुफ़ा
लखनपुर/ छत्तीसगढ़ राज्य का सरगुजा अंचल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के साथ अपने गर्भ में ऐतिहासिक, पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक महत्व के अनेक रहस्य छुपाए हुए है। जो क्रमश: प्रकाश में आते दिखाई देते हैं। ऐसा ही एक स्थान है लखनपुर ब्लॉक के नागमाड़ा की गुफ़ा। लखनपुर से उत्तर पश्चिम दिशा में गुमगरा-भरतपुर मार्ग पर 15 किलोमीटर की दूरी पर सागौन, साल, शीशम, धौरा एवं अन्य प्रजातियों से आच्छादित गुमगरा वन क्षेत्र Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-78470235223525748802014-02-24T10:54:00.001+05:302014-02-24T10:54:28.150+05:30राजिम कुंभ में सैलानी
चित्रोत्पला गंगा महानदी, सोंढूर और पैरी नदी के त्रिवेणी संगम पर माघ पूर्णिमा को प्रतिवर्ष मेला भरता है तथा इस मेले का समापन शिवरात्रि को होता है। भारत में तीन नदियों के संगम स्थल को पवित्र माना जाता है, यहाँ लोकमान्यतानुसार धार्मिक कर्मकांड सम्पन्न कराए जाते हैं। राजिम त्रिवेणी संगम में मेले का आयोजन कब से हो रहा है इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं मिलती पर सन 2000 में इसका सरकारीकरण हो गया। फ़िर 2004 Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-71442964409536166002013-04-03T21:50:00.000+05:302014-06-27T12:03:25.156+05:30सिंघा धुरवा
बार-नवापारा के जंगल में कांसा पठार एवं रमिहा पठार के बीच में हटवारा पठार स्थित है। इस पठार को सिंघाधुरवा कहा जाता है। मान्यता है कि जंगल में स्थित पठार पर वन देवी चांदा दाई का वास है। यहाँ तक पहुंचने के दो रास्ते हैं। एक रास्ता ग्राम अवंरई होकर जाता है तथा दूसरे रास्ते से सघन वन से होकर नाले को 7 बार पार करने के पश्चात पहुंचा जाता है। इस पहाड़ी पर प्राचीन किले के अवशेष मिलते हैं तथा वन Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-59538513512982190502013-02-06T21:59:00.001+05:302013-02-06T22:28:42.224+05:30राजिम: आस्था का केन्द्र पाँचवा कुंभ
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से दक्षिण दिशा में 45 किमी की दूरी पर चित्रोत्पला गंगा (महानदी), सोंढूर एवं पैरी नदी के संगम तीर पर स्थित राजिम नगरी का धार्मिक एवं पौराणिक महत्व सर्वविदित है। प्रत्येक माघ मास की पूर्णिमा से फ़ाल्गुन मास की शिवरात्रि अनादि काल से यहाँ मेले का आयोजन होता रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य का निर्माण होने के पश्चात मेले का विस्तार करने के दृष्टि से इसका आयोजन सरकारी तौर Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com2tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-48621958820453056952013-01-29T09:39:00.001+05:302013-01-29T09:39:52.183+05:30धरोहरों को नष्ट करते नादान
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रामगढ से लौटते हुए
कॉलेज के दिनों से ही प्रकृति का सामिप्य एवं सानिध्य पाने, प्राचीन धरोहरों को देखने और उसकी निर्माण तकनीक को समझने की जिज्ञासा मुझे शहर-शहर, प्रदेश-प्रदेश भटकाती रही। कहीं चमगादड़ों का बसेरा बनी प्राचीन ईमारतें, कहीं गुफ़ाएं, कंदराएं, कहीं उमड़ता-घुमड़ता ठाठें मारता समुद्र, कही घनघोर वन आकर्षित करते रहे। मेरा तन और मन दोनों प्रकृति के समीप ही रहना चाहता है। Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-51198277543356046302013-01-29T09:34:00.001+05:302013-01-29T09:40:28.849+05:30रामगढ़:जोगी माड़ा में अंकित प्रेम कहानी
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रामगढ में लगे सरकारी स्टाल
रामगढ छत्तीसगढ के एतिहासिक स्थलों में सबसे प्राचीन है, यह अम्बिकापुर से 50 किलोमीटर दूरी पर समुद्र तल से 3202 फ़ुट की ऊंचाई पर है। रामगढ की पहाड़ी पर स्थित प्राचीन मंदिर, भित्तिचित्रों एवं गुफ़ाओं से सम्पन्न होने के कारण इस स्थान पर प्राचीन भारतीय संस्कृति का परिचय मिलता है। यहाँ सात परकोटों के भग्नावेश हैं। रामगढ पहाड़ी पर स्थित सीता बेंगरा गुफ़ा Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-45570460375384565732013-01-29T09:27:00.001+05:302014-06-27T11:54:39.984+05:30दंतैल हाथी से मुड़भेड़
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महेशपुर के मंदिरों के पुरावशेष देख कर जंगल के रास्ते से लौट रहे थे। तभी रास्ते में सड़क के किनारे हाथी दिखाई दिया। एक बारगी तो दिमाग की बत्ती जल गयी। सरगुजा के जंगलों में हाथी का दिखना और देखना दोनो ही खतरनाक होता है। छत्तीसगढ के रायगढ, कोरबा, जशपुर और सरगुजा के जंगलों में हाथियों के उत्पात से प्रतिवर्ष बहुत सी जाने जाती हैं और जंगलवासियों के घर तबाह हो जाते हैं। इन हाथियों से Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-15220450098475343682013-01-29T09:19:00.001+05:302013-01-29T09:22:05.891+05:30सरगुजा: राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी
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हमारी सुबह देर से हुई, बाकी साथी तैयार होकर चले गए और हम अलसाए पड़े थे। 11 बजे उदयपुर जनपद मुख्यालय में संगोष्ट्री प्रारंभ होनी थी, समय पर पहुंचना ही ठीक होता है। स्नानाबाद नाश्ता करने लिए बाहर जाना पड़ा क्योंकि आर्यन होटल में किचन नहीं है। रुम सर्विस का भी सत्यानाश है। थोड़ी देर में हमारी गाड़ी आ गयी। अनिल तिवारी और बाबु साहब के साथ हम रामगढ पहुचे। वहां राहुल सिंह एवं के Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-19877652230468442582013-01-29T09:16:00.002+05:302013-01-29T09:20:12.140+05:30सुरगजा से सरगुजा
सरगुजा छत्तीसगढ का एक जिला और सम्भाग है। सरगुजा जिला राजनैतिक सांस्कृतिक एवं धार्मिक गतिविधियों का आदिकाल से ही प्रमुख केन्द्र रहा है। भारतीय कला के इतिहास में सरगुजा का विशेष महत्व है। सरगुजा के अंतर्गत रामगढ, लक्ष्मणगढ, महेशपुर, सतमहला, बेलसर, कोटगढ, डीपाडीह आदि में पुरातात्विक संपदा बिखरी पड़ी है। यहाँ शिल्पियों ने शिल्पकला का उत्कृष्ट प्रदर्शन करते हुए अद्वितीय शिल्प का निर्माण Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-3672813831756076732013-01-29T09:07:00.001+05:302014-06-27T11:57:08.484+05:30बस्तर: अजूबों की धरती
ढोकरा कला कृतियाँ
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जयदेव जी के घर से निकले ही थे कि बहन का फ़ोन आ गया। उसने बताया कि खाना बनकर तैयार है विलंब न करें। दो शिल्प खरीदे गए थे, बिजली न होने के कारण उन पर पालिश नहीं हो पाई, जयदेव जी के पुत्र ने पालिश के लिए बिजली आने का इंतजार करने कहा। तब तक हमने भोजन करना ही जरुरी समझा। बहन के घर पहुंचे, वह बेताबी से इंतजार कर रही थी। बहनोई भी मधूक रस लाकर तैयार थे। Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-53102864909878477442013-01-29T09:00:00.000+05:302014-06-27T11:40:45.769+05:30बस्तर: शिल्पगुरु डॉ जयदेव बघेल
जयदेव बघेल जी के घर (चित्र राहुल सिह जी के सौजन्य से)
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बस्तर, भानपुरी से चल कर हम कोण्डागाँव पहुंचे, नाके के पास गाड़ी रोक कर एक पान वाले से जयदेव बघेल जी का घर पूछते हैं। तो वह कहता है कि सीधे हाथ की तरफ़ जो रास्ता जा रहा है उस पर चले जाईए। उनके नाम का बोर्ड लगा है। हम रास्ते पर आगे बढते हैं, गली में दोनो तरफ़ टेराकोटा के बने हुए शिल्प रखे हुए दिखते Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-83547113097432626502013-01-29T08:56:00.000+05:302014-06-27T11:32:51.446+05:30बस्तर:बाहें फ़ैलाए यामिनी
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चित्रकुट जलप्रपात रात का दृष्य (मेरे मोबाईल से)
हम अब चित्रकूट जाना चाहते थे, शाम के 5 बज रहे थे। हमारी मंजिल 66 किलोमीटर दूर थी। सपाटे से चल पड़े क्योंकि थोड़ी देर में अंधेरा होने को था। जगदलपुर से 6 किलोमीटर पहले अंकल की सीमेंट ब्लॉक फ़ैक्टरी है। गेट खुला देखकर भीतर प्रवेश कर गए। वे फ़ैक्टरी में ही मिल गए। चाय पीते हुए पौन घंटा बीत गया। वहाँ पता चला कि चित्रकूट Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-17530781684185205462013-01-29T08:48:00.000+05:302014-06-27T11:24:43.421+05:30बस्तर: तीरथगढ चापड़ा की चटनी
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तीरथगढ कुटुमसर (गुगल के सौजन्य से)
कांगेर घाटी में स्थित तीरथगढ़ दक्षिण पश्चिम दिशा में जगदलपुर से केशलुर 18 किलोमीटर और फ़ारेस्ट नाका 18 किलोमीटर फ़िर तीरथगढ 6 किलोमीटर है। कुटुमसर गुफ़ा यहाँ से 12 किलो मीटर है। अगर तीरथगढ जाना है तो जगदलपुर से 42 किलो मीटर जाना होगा और कुटुमसर जाना है तो 48 किलोमीटर जाना होगा। फ़ारेस्ट नाका में कुटुमसर जाने के लिए लाईट और गाईडAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-74347995447503667772012-10-24T11:09:00.003+05:302015-05-07T06:06:11.619+05:30बस्तर का दशहरा पर्व
बस्तरराज की कुलदेवी दंतेश्वरी माई
छत्तीसगढ़ में बस्तर का दशहरा पर्व प्रसिद्ध है। 75 दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार को आदिवासियों के साथ सारा बस्तर मनाता है। यहाँ दशहरे में रावण का पुतला फूंकने की परम्परा नहीं है। यह देवी दंतेश्वरी की आराधना का त्यौहार है। चलिए आपको बस्तर के दशहरा की सैर कराते हैं। दशहरा का प्रारंभ पाट जात्रा से होता है। पाटजात्रा का अर्थ है लकड़ी की पूजा। बस्तर के Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-89784750360452976562012-10-08T08:27:00.000+05:302014-06-27T11:16:47.575+05:30पंडवानी मोटल
पंडवानी मोटल का खूबसूरत दृश्य
छत्तीसगढ़ अंचल पर्यटन की दृष्टि से सम्पन्न राज्य है। यहाँ हरी-भरी पर्वत श्रृंखलाएं, लहराती बलखाती नदियाँ, गरजते जल प्रपात, पुरासम्पदाएं, प्राचीन एतिहासिक स्थल, अभ्यारण्य, गुफ़ाएं-कंदराएं, प्रागैतिहासिक काल के भित्ती चित्रों के साथ और भी बहुत कुछ है देखने को, जो पर्यटकों का मन मोह लेता है। यहाँ की धरा किसी स्वर्ग से कम नहीं है। वनों से आच्छादित धरती पर रंग बिरंगी Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-88528003509185096142012-09-26T08:29:00.000+05:302014-06-27T11:10:27.409+05:30महेशपुर: भग्न मंदिरों का वैभव दर्शन
बड़े देऊर मंदिर, के पी वर्मा,ललित शर्मा, राहुल सिंह
सरगुजा अंचल के महेशपुर जाने के लिए उदयपुर रेस्टहाउस से आगे जाकर दायीं तरफ़ कच्चा रास्ता है। यह रास्ता आगे चलकर एक डब्लु बी एम सड़क से जुड़ता है। थोड़ी दूर चलने पर जंगल प्रारंभ हो गया जहां सरई के वृक्ष गर्व से सीना तान कर खड़े हैं जैसे सरगुजा के वैभव का बखान कर रहे हों। सरगुजा है ही इस लायक रमणीय और मनोहारी, प्राकृतिक, सांस्कृतिक एवं Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com5tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-6161891398782024982012-08-23T04:46:00.000+05:302014-06-27T11:03:33.997+05:30दंतेवाड़ा से कुटुमसर
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दंतेवाड़ा की ओर
सुबह आँख खुली तो घड़ी 6 बजा रही थी और हम भी बजे हुए थे, कुछ थकान सी थी। सुबह की चाय मंगाई, चाय पीते वक्त टीवी गा रहा था "सजनवा बैरी हो गए हमार, करमवा बैरी हो गए हमार।" स्नान करने लिए गरम पानी का इंतजार करना पड़ा, जब से सोलर उर्जा से गरम पानी का यंत्र लगा है होटलों में, तब से सूर्य किरणों का इंतजार करना पड़ता है। खिड़की से देखने पर पता चला कि थोड़ी सी धूप खिली Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-11793537585942050532012-08-21T17:07:00.000+05:302014-06-27T10:56:17.212+05:30बस्तर: पहला पड़ाव जगतुगुड़ा
बस्तर की धरा किसी स्वर्ग से कम नहीं। हरी-भरी वादियाँ, उन्मुक्त कल-कल करती नदियाँ, झरने, वन पशु-पक्षी, खनिज एवं वहां के भोले-भाले आदिवासियों का अतिथि सत्कार बरबस बस्तर की ओर खींच ले जाता है। बस्तर के वनों में विभिन्न प्रजाति की इमारती लकड़ियाँ मिलती हैं। यहाँ के परम्परागत शिल्पकार सारे विश्व में अपनी शिल्पकला के नाम से पहचाने जाते हैं। अगर कोई एक बार बस्तर आता है तो यहीं का होकर रह जाता हैAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-75248469870157374242012-07-20T16:36:00.001+05:302014-06-27T10:50:39.277+05:30देऊरपारा का कर्णेश्वर महादेव: छत्तीसगढ का कर्ण प्रयाग
महानदी उद्गम
पुरातात्विक एवं सांस्कृतिक खजाने से छत्तीसगढ समृद्ध है। हम छत्तीसगढ में किसी भी स्थान पर चले जाएं, वहां कुछ न कुछ प्राप्त होता है और हमारी विरासत को देख कर गर्व से भाल उन्नत हो जाता है। चित्रोत्पला गंगा (महानदी) भारत की प्रमुख नदियों में से एक है। महाभारत के भीष्म पर्व में चित्रोत्पला नदी को पुण्यदायिनी और पाप विनाशिनी कहकर स्तुति की गयी है - उत्पलेशं सभासाद्या Anonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-91871675245663440152012-07-16T07:06:00.000+05:302014-06-27T10:43:49.365+05:30सावन में सवनाही तिहार
सवनाही देवी का स्थान गाँव के सियार में
रथयात्रा के बाद सावन माह से छत्तीसगढ अंचल में त्यौहारों की झड़ी लग जाती है। छत्तीसगढ के लगभग सभी त्यौहार कृषि कर्म से जुड़े हुए हैं। सावन के महीने में वर्तमान में कांवरियों का जोर रहता है। प्रत्येक सोमवार को कांवरिये श्रद्धानुसार नदियों का जल लाकर समीस्थ शिवमंदिरों में अर्पित करते हैं। जिससे सावन भर पूजा-पाठ की चहल पहल रहती है। सावन के महीने में टोनाAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-1501588056193183095.post-86624232479308210782012-06-21T00:04:00.002+05:302012-06-21T00:18:49.019+05:30छत्तीसगढ: एक सैलानी की कलम से ………आदिम मनुष्य भोजन के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर भटकता था, जब उसने भोजन का प्रबंधन सीख लिया तो स्थायी निवास बना कर रहने लगा। उसकी जिज्ञासा लगातार भ्रमण, देशाटन, तीर्थाटन, पर्यटन की बनी रही, जो आज तक जारी है। पहले सिर्फ़ दो तरह के घुमंतु यात्री थे, पहले वे जिन्हे व्यापार करके कुछ कमाना है, ये सिर्फ़ व्यापार के उद्देश्य से यात्राएं करते थे। दूसरे वे जिनको चौथापन लग चुका था, ऐसे लोग तीर्थ धामों केAnonymoushttp://www.blogger.com/profile/18032763522939626752noreply@blogger.com17