दंतेवाड़ा से कुटुमसर

प्रस्तुतकर्ता Unknown गुरुवार, 23 अगस्त 2012 0 टिप्पणियाँ
प्रारंभ से पढें दंतेवाड़ा की ओर सुबह आँख खुली तो घड़ी 6 बजा रही थी और हम भी बजे हुए थे, कुछ थकान सी थी। सुबह की चाय मंगाई, चाय पीते वक्त टीवी गा रहा था "सजनवा बैरी हो गए हमार, करमवा बैरी हो गए हमार।" स्नान करने लिए गरम पानी का इंतजार करना पड़ा, जब से सोलर उर्जा से गरम पानी का यंत्र लगा है होटलों में, तब से सूर्य किरणों का इंतजार करना पड़ता है। खिड़की से देखने पर पता चला...

बस्तर: पहला पड़ाव जगतुगुड़ा

प्रस्तुतकर्ता Unknown मंगलवार, 21 अगस्त 2012 4 टिप्पणियाँ
बस्तर की धरा किसी स्वर्ग से कम नहीं। हरी-भरी वादियाँ, उन्मुक्त कल-कल करती नदियाँ, झरने, वन पशु-पक्षी, खनिज एवं वहां के भोले-भाले आदिवासियों का अतिथि सत्कार बरबस बस्तर की ओर खींच ले जाता है। बस्तर के वनों में विभिन्न प्रजाति की इमारती लकड़ियाँ मिलती हैं। यहाँ के परम्परागत शिल्पकार सारे विश्व में अपनी शिल्पकला के नाम से पहचाने जाते हैं। अगर कोई एक बार बस्तर आता है तो...
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